पर्वतारोही बनने का सपना भी कुछ ऐसे हालातों के बाद आज साकार हो सका।


    कहते हैं कि अगर पूरी शिद्दत से प्रयास किया जाए तो सपने बेशक सच में तब्दील होते हैं, फिर चाहे हालात जैसे भी हो। छिंदवाड़ा जिले के प्रसिध्द स्थल पातालकोट से महज़ 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम तामिया की बेटी भावना का पर्वतारोही बनने का सपना भी कुछ ऐसे हालातों के बाद आज साकार हो सका है और वह भी विशिष्ट उपलब्धि के साथ। भावना आज ना केवल मध्यप्रदेश की सबसे कम उम्र की एक पर्वतारोही है, बल्कि उसने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली मध्यप्रदेश की पहली बेटी का मुकाम भी हासिल किया है और हाल ही में उसने अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो पर दीवाली पर तिरंगा लहराकर दीवाली मनाते हुये छिंदवाड़ा जिले के साथ ही प्रदेश और देश को गौरवान्वित किया है। भावना डेहरिया की जिद और जुनून ने उसके हौसलों को साहस और हिम्मत दी है, जिससे वह आज नन्हे पर्वतारोहियों के लिये एक प्रेरक पर्वतारोही भी बन गई है।
     गांव की बेटी भावना के लिए पातालकोट की पहाड़ियों से हिमालय तक का सफर इतना आसान नहीं था। ग्राम तामिया में 12 नवंबर 1991 को जन्मी भावना डेहरिया ग्रामीण परिवेश में रहने वाली चार बहन और एक भाई के बीच तीसरे नंबर की बहन है। पिता श्री मुन्ना लाल डेहरिया शिक्षक और माता श्रीमती उमा देवी डेहरिया गृहणी है। बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रखने वाली भावना खेलकूद में हमेशा अव्वल रही। पढाई और खेल-कूद के साथ ही घर में पशुपालन में भी सहयोग करती थीं। स्कूल से घर आकर पहाड़ों से पालतू पशुओं को लौटा कर घर लाना भावना का काम था। इस दायित्व को निभाने के दौरान उपजे पहाड़ों के प्रति प्रेम से ही शायद उन्हें पर्वतारोही बनने की प्रेरणा मिली और उन्होंने यह मुकाम पाया है। भावना से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि वर्ष 2009 में तत्कालीन कलेक्टर श्री निकुंज कुमार श्रीवास्तव द्वारा पातालकोट में एडवेंचर्स प्रोग्राम का आयोजन उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। उसके पहले तक भावना को यह नहीं पता था कि पर्वतारोहण भी कोई गतिविधि है और इसके लिए किसी कोर्स की जरूरत पड़ती है। भावना ने स्कूल के दौरान बास्केट बॉल और साइकल पोलो में नेशनल खेला है। खेलकूद में अव्वल रहने के कारण भावना को तामिया के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से एक हफ्ते के लिए इस एडवेंचरस प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिला, जहां उसने सभी गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन उसका असली हुनर तब सामने आया जब उसने बड़ी ही आसानी से रॉक क्लाइंबिंग की। इसे देखकर कार्यक्रम के आयोजक भी भावना से बहुत प्रभावित हुए और उनसे ही भावना को पर्वतारोहण गतिविधि और उसके लिए किए जाने वाले कोर्सेज की जानकारी मिली। कैंप खत्म हो गया था, लेकिन अब भावना के मन में पर्वतारोही बनने का सपना घर कर गया था। शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय तामिया से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भावना को उच्च शिक्षा के लिए उनकी बडी बहिन भोपाल ले गई। उच्च शिक्षा के दौरान भोपाल में भी भावना को कई एडवेंचरस गतिविधियों में शामिल होने का अवसर मिला, लेकिन पर्वतारोहण संस्थानों की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। गूगल से सर्च करने पर उसे उत्तरकाशी स्थित एशिया के बेस्ट संस्थान नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग की जानकारी मिली। तत्काल उसने अपना आवेदन दे दिया, लेकिन आवेदन देने के दो साल बाद उसका नंबर आया। तभी उसे पता चला कि कोर्स की फीस 7 हजार 500 रूपये है। सामान्य आर्थिक परिवार की भावना के लिए उच्च शिक्षा के खर्चे के साथ-साथ यह अतिरिक्त राशि कम राशि नहीं थी। इस दौरान वे भोपाल में अपने छोटे भाई जयदीप और बहन गजल की पढाई का पूरा जिम्मा भी एक पेरेन्ट की तरह उठा रही थीं। इन सब जिम्मेदारियों के बाद भी उसने माता-पिता से फीस के लिये नहीं कहा, बल्कि एडवेंचर्स गतिविधियों से प्राप्त प्रोत्साहन राशि को ही इसमें लगा दिया। बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स को ए-ग्रेड से क्वालीफाई करने के बाद ही एडवांस कोर्स की ट्रेनिंग मिलती है। भावना की लगन और मेहनत से उसने ए-ग्रेड के साथ बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स क्वालीफाई किया। उसके बाद एडवांस कोर्स और एम.ओ.आई. कोर्स किया। कोर्स के साथ पहली बार उसने गढ़वाल हिमालय की डी.के.डी. चोटी चढ़ी जिसके बाद भावना में अब आत्मविश्वास आ चुका था, माउंटेनियरिंग से जुडे सारे कंसेप्ट क्लियर हो चुके थे।
     इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन दिल्ली की तरफ से मध्यप्रदेश से भावना को चुना गया और उसने 6 हजार मीटर की चोटी मनीरंग पार की। अब माउंट एवरेस्ट चढ़ने का सपना पूरा करने की बारी थी। इस दिशा में जब कदम बढ़ाया, तब भावना को पता चला कि इसके लिए लगभग 27 लाख 50 हजार रूपये का खर्चा आएगा। इस बात से भावना निराश होने लगी, क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे इतनी बड़ी राशि भावना के सपने को साकार करने में लगा पाते। फिर निराशा को दूर कर भावना ने अपनी एक प्रोफाइल बनाई और स्पॉन्सरशिप के लिए कई उद्योगपतियों और राजनैतिक व्यक्तियों से संपर्क किया, लेकिन तीन साल के प्रयासों के बावजूद भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली। लोगों ने मजाक बनाया कि तामिया के गांव की लड़की क्या माउंट एवरेस्ट चढ़ेगी। फिर कहीं से पिछले वर्ष एक उम्मीद मिली, लेकिन जब राशि देने का समय आया तो सहयोग नहीं मिल सका। इस कारण भावना  पिछले वर्ष भी माउंट एवरेस्ट नहीं चढ सकी, तब मुख्यमंत्री श्री नाथ से सहायता मांगने पर उन्होंने तत्परता दिखाते हुए तीन माह के अंदर ही समस्त औपचारिकताओं के बाद राशि हस्तांतरित कर दी। अब जैसे भावना के सपनों को पंख लग चुके थे। उत्साह से भरी भावना 2 अप्रैल को भोपाल से काठमांडू के लिए निकली और 6 अप्रैल से उसकी यादगार यात्रा की शुरुआत हुई और अंततः भावना ने 22 मई 2019 को विश्व की सबसे उंची चोटी पर पहुंच कर देश का तिरंगा लहराया। शुरुआत से माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचने के रोचक सफर के बारे में भावना ने विस्तार से जानकारी साझा करते हुये बताया कि कैसे उन्हें विभिन्न तकनीकी और भावनात्मक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा था। इसमें एक वक्त ऐसा भी आया जब चोटी पर पहुचने के अंतिम पडाव के ठीक पहले ऑक्सीजन सिलेंडर में तकनीकी परेशानी आने के कारण वे ऑक्सीजन नहीं ले पा रही थीं और उनकी पूरी उम्मीद ही खत्म हो गई थी। उसे यह भी पता नहीं था कि वह वापस जीवित घर पहुंच भी पाएंगी या नहीं, लेकिन ईश्वर में आस्था, माता-पिता का आशीर्वाद और स्वयं पर विश्वास ने उन्हें विश्व की सबसे ऊंची चोटी से सकुशल वापस घर पहुंचाया। इसके बाद आत्मविश्वास से लबरेज भावना ने अफ्रीका के किलिमंजारो में दीवाली के दिन 27 अक्टूबर 2019 को भारत का तिरंगा लहराया है। मुख्यमंत्री श्री नाथ द्वारा दी गई आर्थिक मदद से ही भावना का सपना साकार हो पाया है। भावना कहती हैं कि इतनी कम उम्र में मेरी इस उपलब्धि का बडा श्रेय मुख्यमंत्री श्री नाथ को जाता है। इस सहयोग के लिये मैं आजीवन उनकी आभारी रहूंगी


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