तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ ,अल्लामा इक़बाल

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले


ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है


 


 


सितारों से आगे जहाँ और भी हैं


अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं


 


माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं


तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख


 


हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है


बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा


 


तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ


मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ


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